द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की तथा विश्व ‘शीतयुद्ध’ में उलझ गया। नव स्वतंत्र देशों की अगुवाई करते हुए भारत ने शीतयुद्ध में मुख्य प्रतिद्वंद्वी अमेरिका तथा सोवियत संघ के गुटों से स्वयं को अलग रखा तथा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। इसी क्रम में पाकिस्तान अमेरिका के गुट में शामिल हुआ। हालाँकि 1962 में भारत-चीन युद्ध के पश्चात् भारत का झुकाव सोवियत संघ की तरफ हो गया। 1990 में सोवियत संघ के विघटन के साथ शीतयुद्ध की समाप्ति हुई तथा विश्व अमेरिका के नेतृत्व में एक ध्रुवीय होकर उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की ओर तेज़ी से बढ़ा।
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90 के दशक में भारत में भी वैश्वीकरण एवं उदारीकरण को अपनाने के साथ-साथ पहलकारी एवं सक्रिय विदेश नीति का परिचय देते हुए सभी देशों से सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने पर बल दिया, लेकिन इस क्रम में भी ‘रूस’ भारत का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार एवं मित्र बना रहा। परंतु भारत-अमेरिका परमाणु समझौता एवं एशिया की उभरती महाशक्ति ‘चीन’ के उदय ने एशिया में शक्तियों के समीकरण में बड़ा बदलाव ला दिया।
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भारत अमेरिका के मध्य हाल ही में संपन्न ‘लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग’ तथा चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर, अमेरिका में बढ़ता पाकिस्तान विरोध, भारत में उड़ी हमले के बावजूद रूस-पाकिस्तान का संयुक्त सैन्य अभ्यास, रूस द्वारा दक्षिण चीन सागर में चीन का समर्थन करना आदि उदाहरण एक तरफ भारत-रूस संबंधों में दूरी तथा भारत-अमेरिका संबंधों में निकटता प्रदर्शित करते हैं तो दूसरी ओर चीन-पाकिस्तान तथा रूस की बढ़ती ‘दोस्ती’ को स्पष्ट करते हैं।
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भारत अमेरिका के मध्य हाल ही में संपन्न ‘लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग’ तथा चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर, अमेरिका में बढ़ता पाकिस्तान विरोध, भारत में उड़ी हमले के बावजूद रूस-पाकिस्तान का संयुक्त सैन्य अभ्यास, रूस द्वारा दक्षिण चीन सागर में चीन का समर्थन करना आदि उदाहरण एक तरफ भारत-रूस संबंधों में दूरी तथा भारत-अमेरिका संबंधों में निकटता प्रदर्शित करते हैं तो दूसरी ओर चीन-पाकिस्तान तथा रूस की बढ़ती ‘दोस्ती’ को स्पष्ट करते हैं।
पिछले कुछ वर्षों की घटनाओं के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि एशिया की भू-राजनैतिक अवस्था 'ब्रिटिश सरकार' ने कंपनियों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुशासन को दूर करने के लिए 1773 रेगुलेटिंग एक्ट पारित किया ।
उल्लेखनीय
है एक तरफ जहां कंपनी के कर्मचारियों के कार्य प्रणाली में पारदर्शिता और
कर्मचारियों के बीच अवैध तरीके से धन एकत्रित कर भारत से इंग्लैंड ले जाने
की होड़ लगी थी, वही कंपनी व्यापार घाटे में चल रहा था जिसके कारण कंपनी
ने ब्रिटिश सरकार से ऋण की मांग की थी, इस परिस्थिति को देखते हुए सरकार ने
एक गोपनीय समिति का गठन किया तथा इसकी सिफारिश पर 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट
पारित किया जिसके निम्नलिखित प्रावधान थे_
- इस अधिनियम के तहत परिषद गवर्नर जनरल की संरचना का निर्माण किया गया जो कानून बनाने वाली परिषद के साथ साथ बंगाल के लिए एक नई कार्यपालिका भी थी ।
- इस अधिनियम के तहत मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी को कोलकाता परदेसी के अधिकार कर दिया गया जिसका प्रमुख 'गवर्नर जनरल'होता था, गवर्नर जनरल की परिषद में 4 सदस्य थे , संपूर्ण कोलकाता प्रेसीडेंसी का प्रशासन और सैनिक शक्ति इसी सरकार में नहीं थी।
- इस अधिनियम के तहत 1774 में कोलकाता में उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई जिस के एक प्रमुख न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश थे , जिन्हें फौजदारी , धार्मिक तथा विदेशी मामलों से संबंधित मुकदमों की सुनवाई का अधिकार दिया गया ।
- कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार को देखते हुए इस अधिनियम के तहत कर्मचारियों के निजी व्यापार करने तथा भारतीयों से उपहार या रिश्वत लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया।
- सिविल सेवाओं में सुधार करते हुए राजस्व समाहर्ता को मजिस्ट्रेट का अधिकार दे दिया गया अर्थात अब उन्हें दीवानी मामलों की सुनवाई तथा दंडित करने का अधिकार दिया गया ।
उपर्युक्त
प्रावधानों के अलावा रेगुलेटिंग एक्ट की प्रमुख विशेषता यह भी थी कि इस
अधिनियम के तहत पहली बार कंपनी की प्रशासनिक कार्यों को ब्रिटिश संसद के
निगरानी में लाया गया जिनमें व्यापार और वाणिज्य का मामला शामिल नहीं था।
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अमेरिका की ‘एशिया धुरी’ नीति तथा चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ नीति विभिन्न एशियाई देशों को अपने गुट में शामिल करने की नीति है, जो पुनः चीन बनाम अमेरिका के वर्चस्व का शीतयुद्ध प्रतीत होता है। यदि ऐसा हुआ तो इसका केन्द्र एशिया होगा और शक्ति संतुलन की दिशा पहले से पूर्णतः भिन्न होगी।