उत्तर :
हड़प्पा की लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है, इसीलिये उस काल की बहुत सारी विशेषताओं को समझने के लिये हमें सीमित सूचनाओं और पुरातात्विक अवशेषों से ही संतुष्ट रहना पड़ता है।
विभिन्न साक्ष्यों व सूचनाओं से ज्ञात हुई हड़प्पा काल की सामाजिक विशिष्टताएँ-
- हड़प्पा के समाज में विविध व्यवस्थाओं से लोग जुड़े हुए थे। इनमें पुजारी, योद्धा, किसान, व्यापारी और कारीगर (सुनार, कुम्हार, बुनकर, राजगीर इत्यादि) शामिल थे।
- विभिन्न वर्गों के लोगों द्वारा आवास के लिये भिन्न-भिन्न प्रकार के भवनों का उपयोग किया जाता था। जो लोग बड़े घरों में रहते थे, वे धनी वर्ग से थे और जो कारीगरों के क्वार्टरों जैसी कोठरियों में रहते थे, वे मजदूर वर्ग से संबंधित थे।
- हड़प्पा काल के लोग सूती और ऊनी कपड़े उपयोग में लाते थे। अनेक स्थानों पर मिली तकलियों और सूइयों से ये साक्ष्य मिलता है कि उस समय कताई और बुनाई का प्रचलन था।
- हड़प्पा के लोगों केा सजने-सँवरने का शौक था। विभिन्न स्थलों पर मिली पुरुषों और महिलाओं की मूर्तियों से बाल-संवारने के प्रमाण मिलते हैं। इसके अतिरिक्त लोग आभूषण पहनने के भी शौकीन थे जिनमें स्त्री और पुरुषों दोनों द्वारा उपयोग किये जाने वाले नेकलेस, बाजूबंद, कानों के बूंदे, चूड़ियाँ इत्यादि शामिल थीं।
तत्कालीन समाज के ‘प्रगतिशील’ तत्त्वः
पंजाब और सिंध प्रदेशों में बड़ी संख्या में मिली पक्की मिट्टी की बनी नारी मूर्तियों से संकेत मिलता है कि उस काल में मातृदेवी का अतिशय सम्मान था और इसी कारण ऐसा प्रतीत होता है कि तत्कालीन समाज मातृसत्तात्मक प्रकृति का था। उस काल के लोग पेड़ों और पत्थरों के उपासक थे, जो उनका प्रकृति के प्रेम प्रदर्शित करता है। हड़प्पावासियों में पशुओं की उपासना के प्रचलन का भी प्रमाण मिलता है, जो संभवतः पशुओं की उपयोगिता के महत्त्व से प्रेरित था।