सापेक्षिक गरीबी से निरपेक्ष गरीबी तथा मानवीय गरीबी उत्पन्न हो सकती है क्योंकि सापेक्ष गरीबी में लोगों के जीवन स्तर की भिन्नता को ध्यान में रखा जाता है यह ध्यान में रखा जाता है कि लोगों का रहन सहन कैसा है? परंतु यह ध्यान नहीं दिया जाता है कि लोगों की आय क्या है?
यदि समाज में सभी प्रकार की सुख सुविधाएं हैं लेकिन उनको लेकर अंतर है तो यह माना जाएगा कि समाज में सापेक्षिक गरीबी विद्यमान हैl
प्राय: यह देखा गया है कि किसी भी समाज में कोई कम आय वाला व्यक्ति रहता है तो वह अपनी सामाजिक बहिष्करण की डर से अपनी क्षमता से अधिक खर्च कर देता है जैसे कि अगर समाज में सभी लोगों के पास मोटर गाड़ियां हैं परंतु उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मोटर गाड़ियां खरीदने की इजाजत नहीं देता है फिर भी वह व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार की डर से गाड़ियां खरीद लेता है जिसके परिणाम स्वरुप उसकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है और वह व्यक्ति निरपेक्ष गरीबी की ओर चला जाता है l
अतः यह कहा जा सकता है कि सापेक्षिक गरीबी एक राष्ट्रीय मुद्दा बनती जा रही है क्योंकि सापेक्ष गरीबी से निरपेक्ष गरीबी का जन्म हो सकती है जो राष्ट्र के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है, दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समावेशी विकास की राह में रोड़ा उत्पन्न कर सकती हैl