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Thursday, August 16, 2018

प्रश्न:- क्या भारत में सापेक्षिक गरीबी एक रास्ट्रीय मुद्दा बनती जा रही है ? अपने पक्ष की पुष्टि के लिए पर्याप्त तर्क दीजिए l

              सापेक्षिक गरीबी से निरपेक्ष गरीबी तथा मानवीय गरीबी उत्पन्न हो सकती है क्योंकि सापेक्ष गरीबी  में लोगों के जीवन स्तर की भिन्नता को ध्यान में रखा जाता है यह ध्यान में रखा जाता है कि लोगों का रहन सहन कैसा है? परंतु यह ध्यान नहीं दिया जाता है कि लोगों की आय क्या है?

           यदि समाज में सभी प्रकार की सुख सुविधाएं हैं लेकिन उनको लेकर अंतर है तो यह माना जाएगा कि समाज में सापेक्षिक गरीबी विद्यमान हैl

          प्राय: यह देखा गया है कि किसी भी समाज में कोई कम आय वाला व्यक्ति रहता है तो वह अपनी सामाजिक बहिष्करण की डर से अपनी क्षमता से अधिक खर्च कर देता है जैसे कि अगर समाज में सभी लोगों के पास मोटर गाड़ियां हैं परंतु उस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मोटर गाड़ियां खरीदने की इजाजत नहीं देता है फिर भी वह व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार की डर से गाड़ियां खरीद लेता है जिसके परिणाम स्वरुप उसकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है और वह व्यक्ति निरपेक्ष गरीबी की ओर चला जाता है l

             अतः यह कहा जा सकता है कि सापेक्षिक गरीबी  एक राष्ट्रीय मुद्दा बनती जा रही है क्योंकि सापेक्ष गरीबी से निरपेक्ष गरीबी  का जन्म हो सकती है जो राष्ट्र के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती है, दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि समावेशी विकास की राह में रोड़ा उत्पन्न कर सकती हैl

प्रश्न:- वास्तविक गरीबी से आप क्या समझते हैं? क्या भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए इन अवधारणा को ध्यान में रखा जा सकता है l

          'वास्तविक गरीबी' गरीबी की नई संकल्पना है जो प्रो. अमर्त्य सेन द्वारा दी गई है उन्होंने वास्तविक गरीबी को परिभाषित करते हुए कहा "क्षमताओं का अभाव गरीबी है "

        इन के अनुसार क्षमता से तात्पर्य लोगों के स्वास्थ्य ,शिक्षा और जीवन स्तर से है इनका  मानना है कि गरीबी निवारण में आय की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है लेकिन केवल आय को बढ़ाने से गरीबी को स्थाई रूप से कम नहीं किया जा सकता है आय के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि लोगों की क्षमताओं का विकास हो l

        लोगों की क्षमताओं का विकास तभी हो सकता है, जब लोग विवेकशील हो, समाज प्रगतिशील हो तथा प्राकृतिक विषम परिस्थितियां नहीं हो l

            अगर भारत में समावेशी विकास लाना है तथा गरीबी को स्थाई रूप से खत्म करना है तो इस अवधारणा को ध्यान में रखना ही होगा क्योंकि जब तक क्षमता निर्माण नहीं हो जाता गरीबी कम नहीं हो सकती  l

यूएनडीपी द्वारा 2010 में शुरू किए गए MPI में भी गरीबी की पहचान के लिए गरीबी की इस अवधारणा को ध्यान में रखा गया है l 

        अतः वर्तमान में भारत सरकार द्वारा इस अवधारणा को ध्यान में रखकर योजना के कार्यान्वयन की आवश्यकता हैl

प्रश्न:- भारत में परिणाम बजट (Outcome Budget) की आवश्यकता पर टिप्पणी करें l इस बजट के स्तर पर सरकार के निष्पादन को समझने के लिये क्या यह जरुरी है कि भारत में गरीबी की अवधारणा को बदला जाना चाहिए ?


      किसी भी योजनाओं के लिए वित्त मंत्रालय से अनुदान मांगते समय प्रत्येक मंत्रालय द्वारा परिणाम बजट पेश किया जाता हैl

     सरकार द्वारा बजट में किए गए वित्तीय प्रावधानों से बेहतर परिणाम हासिल करने और जरूरत पड़ने पर वित्तीय वर्ष के बीच में ही योजनाओं में बदलाव के उद्देश्य से परिणाम बजट लाए गएl

      परिणाम बजट के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि यह एक प्रगति कार्ड /प्रोग्रेस कार्ड है यह सभी सरकारी कार्यक्रमों के विकास के परिणाम को मापता हैइसके माध्यम से निधियों के प्रवाह योजनाओं के कार्यान्वयन और धन उपयोग के वास्तविक परिणाम पर निगरानी रखा जा सकता हैl

        इससे यह भी जाना जा सकता है कि सरकार द्वारा क्षमता निर्माण अर्थात शिक्षा, स्कूल निर्माण ... आदि के लिए धन आवंटन किया गया है या नहीं अर्थात या पता लगाया जा सकता है कि सरकार का कार्यान्वयन उचित है या नहीं

       प्रो. अमर्त्य सेन ने गरीबी की नई संकल्पना वास्तविक गरीबी को परिभाषित करते हुए कहा क्षमताओं का अभाव गरीबी है अर्थात अगर गरीबी हटानी है तो क्षमताओं का विकास करना होगा क्षमताओं का विकास अच्छी शिक्षा, स्वास्थ ...आदि को उपलब्ध करा कर ही किया जा सकता है l

      अतः परिणाम बजट के स्तर पर सरकार के निष्पादन /कार्यान्वयन को समझने के लिए यह आवश्यक है कि गरीबी की अवधारणा को बदला जाना चाहिए, गरीबी दूर करने के लिए अाय की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है लेकिन केवल आय को बढ़ाने से गरीबी का स्तर काम नहीं किया जा सकता है इसके लिए हमें क्षमताओं का विकास करना होगा l सरकार द्वारा इस के संदर्भ में किए गए प्रयास को प्रभावी और जवाबदेही तथा बेहतर ढंग से प्रबंधित करने के लिए परिणाम बजट की एक अहम भूमिका हो सकती है l

Wednesday, August 15, 2018

प्रश्न:- प्रो. अमर्त्य सेन द्वारा शिक्षा और स्वास्थ पर अधिक जोर दिया गया l टिप्पणी कीजिये l


             शिक्षा और स्वास्थ्य को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक माना जाता है, जिससे लोगों में क्षमता विकास किया जा सकता है l

               भारत वर्तमान दौर में गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है प्रो. अमर्त्य सेन ने गरीबी की नई अवधारणा वास्तविक गरीबी के संदर्भ में कहा है कि क्षमताओं का अभाव गरीबी है यहां क्षमताओं से तात्पर्य लोगों के शिक्षा स्वास्थ्य और जीवन स्तर से है अगर किसी को स्वास्थ्य शिक्षा आदि न्यूनतम रूप से उचित स्थान प्राप्त नहीं है तो यह माना जाएगा कि व्यक्ति में क्षमता का अभाव है और यही अभाव गरीबी है यही कारण है कि प्रोफेसर अमर्त्य सेन द्वारा शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर दिया गयाl

             UNDP  द्वारा 2010 में शुरू किए गए MPI  की पहचान करने के लिए वास्तविक गरीबी की अवधारणा को ध्यान में रखा गया हैl

             वास्तविक गरीबी की अवधारणा में लोगों की गरीबी का अनुमान करने के लिए उनकी आय या खर्च को ध्यान में नहीं रखा जाता है यह ध्यान में रखा जाता है कि उनकी शिक्षा स्वास्थ्य और जीवन स्तर को लेकर उनकी  से जुड़े 10 मानकों को लेकर उनकी वचनाओं की स्थिति कैसी हैl