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Tuesday, December 31, 2019

प्रश्न:- भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में विदेशी धरती से संचालित किये जाने वाले गतिविधियों को रेखांकित कर, उनके महत्त्व पर प्रकाश डालें।

उत्तर :

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी आज़ादी सुनिश्चित करने के लिये शुरुआती दिनों से ही भारतीयों द्वारा भारत सहित  विदेशी धरती पर चहुँमुखी प्रयास देखने को मिलता है।
  • आरंभ में उदारवादियों द्वारा भारत की ही भाँति विदेशों में संस्थाएँ स्थापित कर तथा पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी मांगों को मुखर रूप से उठाया गया।
  • आरंभ की गतिविधियों के रूप में दादाभाई नौरोजी द्वारा लंदन में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की गई।
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा भी लंदन में ब्रिटिश कमेटी ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। इस संस्था द्वारा वहाँ ‘इंडिया’ नामक एक पत्रिका भी निकाली गई।
  • बाद के दिनों में जब भारत में स्वतंत्रता हेतु क्रांतिकारी गतिविधियाँ जोर पकड़ने लगी, ऐसे में इन भारतीय क्रांतिकारी संगठनों के संचालन व समन्वय हेतु विदेशों में भी संगठन बने।
  • क्रांतिकारी संगठनों में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा इंडिया हाउस की स्थापना की गई। इस संगठन ने ब्रिटेन में भारतीय छात्रों के बीच राष्ट्रवादी भावना का प्रचार-प्रसार किया। इसी संगठन से जुड़े मदनलाल ढींगरा ने लंदन में कर्जन वायली की हत्या कर दी थी।
  • मैडम भीकाजी काम द्वारा पेरिस व जेनेवा में राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रचार किया गया।
  • विदेशी धरती से क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन में सैन फ्रांसिस्कों में स्थापित गदर पार्टी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इसने कई भारतीय भाषाओं में ‘गदर’ नामक पत्रिका का प्रकाशन कर राष्ट्रवादी गतिविधि को प्रचारित किया। इस पार्टी ने पंजाब में भी क्रांतिकारी घटनाओं बढ़ावा दिया। 
  • भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा अंग्रेज के विरूद्ध सैन्य गतिविधि संचालित करने के लिये जापान एवं जर्मनी की सहायता से आज़ाद हिंद फौज का गठन किया गया।
महत्त्व
आरंभिक उदारवादियों द्वारा की गई कार्यवाहियों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया वैचारिक आधार मिला क्योंकि इससे पहले ब्रिटिश जनता व सरकार भारतीय समस्याओं से अनजान थे। इसने भारत में अंग्रेजी शासन व साम्राज्यवाद के खोखलेपन को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया जिससे ब्रिटेन पर एक दबाव बना। इसके अतिरिक्त इसने भारतीयों को भी स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति उत्साह व संगठन बनाकर संघर्ष करने की प्रेरणा दी।

Sunday, August 19, 2018

प्रश्न:- असहयोग आंदोलन की वापसी ने जिस क्रांतिकारी आंदोलन की नींव तैयार की थी, उसे काकोरी कांड ने समाप्त कर दिया था। समीक्षा कीजिये।

   

     अगस्त 1920 से शुरू हुआ असहयोग आंदोलन 1922 में  अपने चरम पर था कि बारदोली प्रस्ताव में गांधी जी ने आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। इसके मुख्य रूप से दो कारण बताए जाते हैं –
(1) 5 फरवरी 1922 को घटित चौरी-चौरा कांड जिसमें ख़िलाफ़त के एक जुलूस में शामिल उत्तेजित भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया तथा 22 पुलिसकर्मी मारे गए l
(2) सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होने से पहले ही असफल होने से बचाने के लिये असहयोग आंदोलन को वापस लिया जाना। 

    कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन आंदोलन के एकाएक वापस लिये जाने से उत्साही जनता की उम्मीदों पर पानी फिर गया। जनांदोलन की आँधी में उत्साहित होकर जिन युवकों ने पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी थी और कुछ ने तो अपना घर-बार भी छोड़ दिया था, वे अब महसूस कर रहे थे कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है। अहिंसक आंदोलन की विचारधारा से उनका विश्वास उठने लगा और किसी अन्य विकल्प की तलाश की जाने लगी। इनमें से अधिसंख्य ने अब मान लिया था कि सिर्फ हिंसात्मक तरीकों से ही आज़ादी प्राप्त की जा सकती है और यहीं से क्रांतिकारी आंदोलन की नींव तैयार हुई। 

    सबसे पहले क्रांतिकारियों ने संगठित होना शुरू किया। अक्तूबर 1924 में इन क्रांतिकारी युवकों का कानपुर में एक सम्मलेन हुआ जिसमें हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया गया। इसका उद्देश्य सशस्त्र क्रांति के माध्यम से औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना और एक संघीय गणतंत्र की स्थापना करना था। संघर्ष छेड़ने से पहले बड़े पैमाने पर प्रचार कार्य किया जाना ज़रूरी था, नौजवानों को अपने दल में मिलाना और प्रशिक्षित करना तथा हथियार भी जुटाने थे। इसके लिए पैसों की ज़रुरत थी। संगठन ने लखनऊ के पास के एक गाँव काकोरी में रेल विभाग के खजाने को लूट कर पहली बड़ी कार्यवाही को अंजाम दिया। यह घटना इतिहास में काकोरी काण्ड के नाम से मशहूर है। ब्रिटिश सरकार इस घटना से कुपित हुई और भारी संख्या में युवकों को गिरफ्तार कर उन पर मुकद्दमा चलाया गया। अशफाक़उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी जैसे आंदोलन को दिशा देने वाले क्रांतिकारियों को फाँसी दे दी गई। चार को आजीवन कारावास और 17 अन्य को लंबी सज़ा सुनाई गई, जबकि चंद्रशेखर आज़ाद फरार हो गये थे। 

    वस्तुतः उतर भारत के  क्रांतिकारियों के लिये काकोरी कांड एक बड़ा आघात ज़रूर था पर ऐसा नहीं था कि इसने क्रांतिकारी आंदोलन को समाप्त कर दिया था बल्कि इसने क्रांतिकारी संघर्ष के लिये अनेक युवाओं को तैयार किया जिनमें भगत सिंह, सुखदेव, शिव वर्मा, और जयदेव कपूर जैसे क्रांतिकारी प्रमुख थे।

प्रश्न:- स्वतंत्रता के बाद महिलाओं की भूमिका केवल महिलाओं के मुद्दे तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि उन्होंने खेतिहरों, आदिवासियों, पर्यावरण आदि से संबंधित मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. चर्चा कीजिए l



    स्वतंत्रता के बाद से महिलाओं की विधिक , राजनीतिक, शैक्षिक और सामाजिक स्थिति में नाटकीय परिवर्तन आए है. इसका श्रेय मुख्य रूप से, महिला मुद्दों के समर्थक महिला संगठनों, जमीनी स्तर के आंदोलनों और राजनीतिक दलों को जाता है. इस प्रकार इन आंदोलनों में महिलाएं और उनसे जुड़े मुद्दों का समर्थन करने वाले संगठनों की सक्रिय भागीदारी रही है.

इन आंदोलनों ने उन्हें समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े मुद्दों में महत्वपूर्ण भागीदार बनने के लिए सक्षम बनाया है –
महिलाओं ने विभिन्न मुद्दों पर प्रमुख भूमिका निभाई. 1946 -47 में बंगाल के तेभागा कृषक आंदोलन में, महिलाओं ने स्वयं को नारी वाहिनी नामक एक पृथक मंच के रूप में संगठित किया और साथ ही आश्रय स्थलों का संचालन तथा संचार लाइनों का रखरखाव भी किया.

तत्कालीन हैदराबाद प्रांत के तेलंगाना क्षेत्र में 1946 से 1950 तक चले एक और प्रमुख कम्युनिस्ट कृषक संघर्ष में, महिलाओं की अत्यधिक सार्थक भागीदारी रही.

आदिवासियों के बीच भी महिलाओं ने प्रमुख भूमिका निभाई. उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के धूलिया जिले के शहादा आदिवासी क्षेत्र में वर्ष 1972 में भूमि से जुड़े एक आंदोलन में भील आदिवासी महिलाओं की एक विशेष भूमिका थी. आंदोलन का समापन एक शराब विरोधी अभियान से हुआ.

गुजरात में 1973 से 75 तक मूल्य वृद्धि के विरुद्ध चलाए गए नवनिर्माण आंदोलन में महिलाओं की सक्रिय भूमिका थी.

गुजरात में टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन की महिला शाखा की स्व – कार्यरत महिला संगठन की स्थापना की गई.

पर्यावरण क्षेत्र में वर्ष 1974 में चिपको आंदोलन में महिलाओं की प्रमुख भूमिका थी. इस आंदोलन का नामाकरण महिलाओं के उस कार्यशैली से हुआ था जिसमें वह वृक्षों को लकड़ी के ठेकेदारों द्वारा कटने से बचाने हेतु उन वृक्षों से चिपक गई थी.

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन ने वर्ष 1984 में भोपाल स्थिति यूनियन कार्बाइड कारखाने में रासायनिक गैस रिसाव दुर्घटना के पीड़ितों को न्याय दिलाने के प्रयासों में अग्रणी भूमिका निभाई.
राजनीति में महिलाएं एक संवेदनशील मतदाता समूह के रूप में भी उभरी है और पंचायतों में एक-तिहाई आरक्षण के बल पर तृणमूल स्तर के प्रशासन पर अपनी महत्वपूर्ण छोड़ने में सफल रही है.

Thursday, May 31, 2018

प्रश्न:-चार्टिस्ट आंदोलन राजनीतिक सुधारों के वेश में सामाजिक क्रांति का प्रयत्न था। व्याख्या करें।


19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इंग्लैंड में मजदूर वर्ग के हितों के संरक्षण के लिये चलाया गया आंदोलन ही चार्टिस्ट आंदोलन कहलाता है। औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप इंग्लैंड में अनेक नवीन औद्योगिक केंद्रों की स्थापना हुई जिससे ब्रिटेन के विभिन्न क्षेत्रें से लोग यहाँ आकर बसने लगे। किंतु सामाजिक-आर्थिक विषमता के कारण श्रमिकों की स्थिति गंभीर से गंभीरतम होती गई। इसी दुरावस्था को दूर करने के लिये श्रमिक वर्ग ने संसद के समक्ष अपनी मांगें रखीं। चूँकि ये मांगें एक चार्टर के रूप में थीं, अतः यह आंदोलन चार्टिस्ट आंदोलन कहलाया।

आंदोलनकारियों ने मांगों का एक दस्तावेज तैयार कियाजिसे ‘जनता का आज्ञापत्र’ कहा गया। इसमें छः मांगें थीं।

  1. सभी को वयस्क मताधिकार प्राप्त हो।
  2. निचले सदन की सदस्यता के लिये न्यूनतम संपत्ति की शर्त समाप्त हो।
  3. संसद का वार्षिक चुनाव हो।
  4.  मतदान गुप्त हो।
  5. संसद सदस्यों को वेतन दिया जाए।
  6. संसद क्षेत्र समान हों।
उपर्युक्त मांगों से यह पूर्णतया स्पष्ट हो गया कि यह एक राजनीतिक कार्यक्रम था। किंतु इन राजनीतिक सुधारों की मांग के पीछे आर्थिक और सामाजिक विषमता ही उत्तरदायी थी।
चूँकि नगरीय क्रांति के फलस्वरूप स्थापित औद्योगिक नगरों में मज़दूर वर्ग अनेक समस्याओं से ग्रसित था। अतः वयस्क मताधिकार और निचले सदन की सदस्यता प्राप्त कर वे अपने अधिकारों को सुनिश्चित कर सकते थे। राजनीतिक हिस्सेदारी के माध्यम से समाज विशेषकर मजदूर वर्ग में जागरूकता आती और उनमें समता (संसद क्षेत्र समान हो) की भावना स्थापित होती। इससे सामाजिक क्रांति का आविर्भाव होता है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि चार्टिस्ट आंदोलन एक ऐसा प्रयत्न था, जिसके अंतर्गत राजनैतिक सुधारों के माध्यम से सामाजिक क्रांति लाने का उद्देश्य निहित था। इसका उद्देश्य समाज में आमूल-चूल परिवर्तन करके मजदूरों की दशा में सुधार करना था। यद्यपि यह आंदोलन असफल रहा तथापि इसके दूरगामी परिणाम रहे।

Tuesday, March 6, 2018

History(Modern),

1.  यूरोपियों का आगमन 
2.  भारत पर ब्रिटिश विजय
·         आंग्ल-फ्राँसीसी संघर्ष
·         आंग्ल-सिक्ख, आंग्ल-मैसूर, आंग्ल-मराठा युद्ध
·         प्लासी और बक्सर का युद्ध
·         विस्तारवादी नीतियाँ, सहायक संधि, हड़प नीति आदि
3.  1857 का विद्रोहः विभिन्न नेतृत्वकर्त्ता तथा विद्रोह स्थल, असफलता के कारण, विभिन्न टिप्पणियाँ
4.  ब्रिटिश प्रशासनिक तथा आर्थिक नीतियों का विकास
·         भू-राजस्व
·         राजस्व प्रशासन
·         सैनिक प्रशासन
·         न्याय प्रणाली का विकास
·         कम्पनी के काल में लोक सेवा का विकास
·         स्थानीय स्वशासन
·         ब्रिटिश आर्थिक नीति एवं प्रभाव
5.  शिक्षा तथा समाचार-पत्रों का विकास
6. नागरिक एवं जनजातीय विद्रोह
7.  संवैधानिक विकास
·         रेग्युलेटिंग एक्ट से 1853 के चार्टर एक्ट तक
·         1858 की विक्टोरिया घोषणा तथा 1861 का अधिनियम
·         1892, 1909 एवं 1919 के अधिनियम तथा साइमन कमीशन
·         1935 का भारत शासन अधिनियम
·         अगस्त प्रस्ताव, क्रिप्स मिशन, वेवेल प्लान तथा राजगोपालाचारी फार्मूला
·         कैबिनेट मिशन
·         माउंटबेटन योजना
8.  भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
·         कांग्रेस के पूर्व की संस्थाएँ
·         कांग्रेस का गठन एवं प्रारंभिक दौर की राजनीति
·         बंगाल विभाजन
·         प्रथम विश्व युद्ध और भारत
9.  गांधीजी का राष्ट्रीय आंदोलन में पदार्पण
·         चम्पारण, अहमदाबाद, खेड़ा आंदोलन
·         रॉलेट एक्ट
·         खिलाफत
·         असहयोग
·         स्वराज पार्टी
10.  क्रांतिकारी आंदोलन
11.  साइमन कमीशन एवं नेहरू रिपोर्ट
12.  सविनय अवज्ञा आंदोलन
·         गांधी-इरविन समझौता
·         गोलमेज सम्मेलन
·         पूना पैक्ट
13.  वामपंथी विचारधारा एवं भारतीय राजनीति
14.  श्रमिक एवं कृषक आंदोलन
15.  भारत छोड़ो आंदोलन
16.  नौसेना विद्रोह
17.  भारतीय राष्ट्रीय सेना और सुभाष चंद्र बोस
18.  भारत विभाजन और स्वतंत्रता
19.  विविध

Friday, February 2, 2018

प्रश्न;-बाल गंगाधर तिलक एक निर्भीक एवं स्वाभिमानी राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ एक दूरद्रष्टा भी थे। चर्चा कीजिए।

              बाल गंगाधर तिलक एक उग्र राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी, वकील एवं समाज सेवक थे। वे भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में पहले लोकप्रिय नेता था। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध ज़ोरदार तरीके से आवाज़ उठाई थी, इसीलिये ब्रिटिश अधिकारी उन्हें ‘भारतीय अशांति के पिता’ कहते थे। चूंकि उनकी लोगों के मध्य अत्यधिक स्वीकृति थी, इसीलिये उन्हें ‘लोकमान्य’ की उपाधि भी मिली हुई थी।

     बाल गंगाधर तिलक एक निर्भीक एवं स्वाभिमानी नेता थे। वे अपनी राय बेबाकी व आक्रामक तेवरों के साथ अपने समाचार पत्रों (मराठा और केसरी) में लिखते थे। उन्होंने अपनी इस निर्भीकता एवं स्वाभिमान की कीमत तीन बार (1897, 1909 और 1916) जेल जाकर चुकाई परन्तु कभी भी अंग्रेजी हुकूमत के समक्ष झुके नहीं। उनका प्रसिद्ध नारा - ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा।’ उनके व्यक्तित्व की स्पष्ट झलक दिखा देता है।

     लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु संघर्ष करने की चेतना जागृत करने तथा उन्हें एकजुट करने के लिये तिलक ने अपनी भविष्य उन्मुखी सोच के तहत ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की तथा ‘गणेश महोत्सव’ व ‘शिवाजी उत्सव’ जैसे कार्यक्रमों को एक बड़े पैमाने के उत्सवों में तब्दील किया। यह उनकी दूरदृष्टि ही कही जाएगी कि उनके द्वारा शुरू किया गया ‘स्वदेशी कार्यक्रम’ आज तक भिन्न-भिन्न रूपों में अपनी प्रासांगिकता बनाये हुए है। 

     परन्तु, बालगंगाधर तिलक एक उग्र राष्ट्रवादी स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ एक ‘सामाजिक रूढ़िवादी’ भी थे। वे ‘गणेश महोत्सव’ और ‘शिवाजी उत्सव’ के आयोजनों से हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य बढ़ते अविश्वास को अच्छे तरीके से भाँप नहीं पाये। साथ ही, उन्होंने अंग्रेजी शासन के कुछ सुधारात्मक प्रयासों का विरोध भी अपनी 'रूढ़िवादिता' के चलते किया, जैसे- जल्दी शादी करने के व्यक्तिगत रूप से विरोधी होने के बावजूद उन्होंने 1891 में ‘एज ऑफ कंसेन्ट विधेयक’ का विरोध किया। इस अधिनियम ने लड़की के विवाह करने की न्यूनतम आयु 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दी थी। तिलक ने इस विधेयक को हिन्दू धर्म में दखलंदाजी और एक खतरनाक शुरुआत के तौर पर देखा।

     फिर भी, तिलक निःसंदेह एक महान् स्वतंत्रता सेनानी एवं निर्भीक व्यक्तित्व थे। यह स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का ही परिणाम था कि उनके मरणोपरांत गांधीजी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ तथा नेहरूजी ने उन्हें ‘भारतीय क्रान्ति का जनक’ कहा।