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Thursday, January 16, 2020

प्रश्न:-पूर्वोत्तर भारत अक्सर आंतरिक तनावों के कारण चर्चा में रहता है, ‘एक ओर इसका कारण नृजातीय विविधता को माना जाता है तो दूसरी ओर स्वयं की भारत से अलगाव की भावना को।’ कथन को स्पष्ट करते हुए, इस स्थिति में सुधार हेतु अपेक्षित उपायों की चर्चा कीजिये।

भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र विविध परिप्रेक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण है। जहाँ एक तरफ यहाँ की सांस्कृतिक विविधता भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है, प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता है, वहीं चीन, म्याँमार और बांग्लादेश के साथ सीमा साझेदारी के कारण भी इस क्षेत्र का महत्त्व बढ़ जाता है। ऐसे में इस क्षेत्र का तनावग्रस्त होना भारत की आंतरिक सुरक्षा तथा विकास दोनों के लिए उचित नहीं।

नृजातीय विविधता के संदर्भ में निम्नलिखित कारक हैंः

  • पूर्वोत्तर में विभिन्न नृजातीय समुदाय हैं। इनमें से कई आज भी अपनी परंपरागत संस्कृति के साथ रूढ़ बने हुए हैं। मेइती, नगा, कार्बी, बोडो आदि ऐसे कुछ महत्त्वपूर्ण समुदाय हैं।
  • इस परिप्रेक्ष्य में कई बार इन समुदायों के मध्य ही स्वामित्व के अधिकारों को लेकर संघर्ष हो जाते हैं।
  • वहीं, भारत से अलगाव की प्रवृत्ति के संदर्भ में निम्नलिखित कारक दृष्टिगोचर होते हैं-
  • शेष भारत और पूर्वाेत्तर क्षेत्र के कुछ लोगों के अंतर्मन में ऐसी भावना निर्मित हो गई है कि इन दोनों के हित पूर्णतः भिन्न हैं।
  • पूर्वाेत्तर क्षेत्र में विवादास्पद अफस्पा के प्रभाव ने भी यहाँ अलगाववादी मंशा को उत्तेजित किया है।
  • कुछ गुटों, जैसे नागा गुट एन.एस.सी.एन. द्वारा अलग स्वायत्त क्षेत्र निर्मित करने की मांग।
  • चीन जैसी बाह्य शक्तियों द्वारा क्षेत्र के उग्रवादी गुटों को समर्थन देना ताकि ये भारत सरकार के विरुद्ध कार्यवाहियाँ करते रहें।
  • इन परिस्थितियों में पूर्वोत्तर क्षेत्र के संदर्भ में ठोस कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यह कार्रवाई संरचनात्मक और गुणात्मक दोनों परिप्रेक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण साबित होगी।


पूर्वाेत्तर क्षेत्र में आतंरिक तनावों से निपटने के लिये प्रभावी अपेक्षित उपाय निम्निलिखित हैं-

प्रभावी शांति वार्ता व आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति का निर्माण एवं समीपवर्ती राष्ट्रों से सहयोग एवं समन्वय, आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों का उचित सत्यापन, नीति निर्माण में पूर्वाेत्तर के लोगों की संस्कृति व मनोदशा का ध्यान, अवैध प्रवासियों पर प्रभावी रोक और निष्पक्ष राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के निर्माण द्वारा उचित समाधान संभव है।

स्वायत्त जिला परिषदों के माध्यम से जातीय अल्पसंख्यकों को शक्तियों को प्रत्यायोजित करने, शासन व प्रशासन के स्तर पर कोताही को दूर करने, युद्धविराम समझौते व शांति वार्ताओं का लाभ लेकर अपनी शक्ति को सुदृढ़ करने वाले गुटों की गतिविधियों पर रोक, समान रूप से समस्त क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था में सुधार, लुक-ईस्ट नीति के साथ उचित संलग्नता, सीमा विवादों के समयबद्ध समाधान, सतत एवं समावेशी विकास जैसे उपाय प्रमुख रूप से कारगर साबित हो सकते हैं।

कुल मिलाकर पूर्वाेत्तर भारत को भारत के अभिन्न अंग के रूप में और विकास करने की आवश्यकता है। साथ ही यहाँ विद्यमान तनाव के कारणों को आपसी समन्वय से दूर करने की आवश्यकता है तभी भारत का संपूर्ण विकास हो सकता है।

Tuesday, July 3, 2018

प्रश्न:-“सामुदायिक पुलिस व्यवस्था, पुलिस और स्थानीय समुदायों के बीच विश्वास बहाली में मदद कर सकती है और यह पुलिस की प्रभावोत्पादकता में भी वृद्धि करेगी।” इस कथन पर चर्चा करें। भारत में पुलिस द्वारा सोशल मीडिया पर अपनी सामुदायिक पहुँच बढ़ाने के प्रयासों पर टिप्पणी करें।

          सामुदायिक पुलिस व्यवस्था पुलिस के कार्यों में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने का एक तरीका है। यह एक ऐसा वातावरण निर्मित करती है, जिसमें नागरिक समुदाय की सुरक्षा में वृद्धि सुनिश्चित की जाती है। वर्तमान में सोशल मीडिया भी पुलिस और जनता के बीच समन्वय स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

सक्रिय पुलिस व्यवस्था की स्थापना में योगदान-
        आमतौर पर पुलिस पेट्रोलिंग, घटना के बाद की जाँच और आपराधिक न्याय प्रणाली के अन्य प्रतिक्रियात्मक तरीकों पर निर्भर करती है। पुलिस कार्रवाही का यह प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण आम जनता और पुलिस के बीच विश्वास की कमी का महत्त्वपूर्ण कारण है। 

           प्रो-एक्टिव या सक्रिय पुलिस के लिये आवश्यक है कि समुदायों को उनके क्षेत्रों में नीति निर्धारण और मार्गदर्शन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर दिया जाए।

सामुदायिक पुलिस के अन्य लाभ-
            सामुदायिक पुलिसिंग से अपराधों की सुभेद्यता का मानचित्रण किया जाना संभव हो जाता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग, मानव तस्करी, संदिग्ध गतिविधियों आदि की पहचान कर अपराध-प्रवण क्षेत्र का निर्धारण कर आवश्यक कार्रवाही की जा सकती है। सांप्रदायिक संघर्ष को टालने में यह बेहद महत्त्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है।

सामुदायिक पुलिस के उदाहरण-
           भारत में कई राज्यों ने सामुदायिक पुलिस-व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया है, जैसे- तमिलनाडु में ‘पुलिस मित्र’, असम में ‘प्रहरी’, बंगलुरु सिटी पुलिस द्वारा ‘स्पंदन’ नामक पहल आदि।

सामुदायिक नियंत्रण में सोशल मीडिया का उपयोग-
          सोशल मीडिया जैसे -फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप, प्रामाणिक जानकारी के प्रसार हेतु पुलिस के लिये एक महत्त्वपूर्ण माध्यम प्रदान करते हैं। आम लोगों और पुलिस के बीच द्विपक्षीय संचार और पुलिस व समुदाय के संबंधों को बढ़ावा देने का यह एक सुविधाजनक तरीका है। शिकायत, रिपोर्टिंग और निवारण में यह फायदेमंद है।   इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-
  • बंगलुरु पुलिस द्वारा कावेरी नदी से संबंधित हिंसा और बेंगलुरू में कर्फ्यू के दौरान प्रामाणिक जानकारी का प्रसार करने के लिये ट्विटर का प्रयोग किया गया।
  • हैदराबाद शहर पुलिस ने सामुदायिक पुलिसिंग के लिये मोबाइल एप्लिकेशन ‘हॉक आई’ के लिये 2016-17 में ई-गवर्नेंस का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता।

          नगरसुरक्षा समितियाँ, महिला हेल्पलाइन हो या बालमित्र थानें, ट्रेफिक वार्डन हो या विशेष पुलिस अधिकारी, पुलिस के इन सब सद्प्रयासों को समाज की सराहना, सहयोग एवं सद्भावना मिली है। इन सब उपक्रमों के माध्यम से पुलिस और जनता के बीच सीधा संवाद प्रारंभ होने से यह उम्मीद की जानी चाहिये कि यह संवाद एवं सहयोग एक सेतु के रूप में विकसित होगा।     
             सामुदायिक पुलिसिंग एक सकारात्मक अवधारणा है जो पुलिस और जनता के बीच की खाई को पाटने का काम करती है।  सामुदायिक पुलिस व्यवस्था को संस्थागत बनाने के लिये प्रयास किये जाने चाहिये और ग्रामीण क्षेत्रों तक भी इसका विस्तार किया जाना चाहिए। गृह मंत्रालय सामुदायिक पुलिसिंग के लिये एक राष्ट्रव्यापी कार्ययोजना शुरू कर रहा है और इसे सक्षम बनाने के लिये तकनीकी संरचना का निर्माण भी किया जा सकेगा।