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Sunday, December 23, 2018

प्रश्न:- भारत में श्रमिक वर्ग की सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दे कौन-से हैं? श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने हाल ही में कौन-से कदम उठाए हैं ?

उत्तर :

भारत के अधिकांश श्रमिक प्राथमिक क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और इस क्षेत्र के असंगठित होने के कारण श्रमिकों के मध्य सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।भारत में श्रमिकों की बहुलता है। श्रमिक वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। इसके बावज़ूद भारतीय श्रमिक वर्ग सामाजिक सुरक्षा के मामले में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
  • भारत के अधिकांश श्रमिक प्राथमिक क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और इस क्षेत्र के असंगठित होने के कारण श्रमिकों के मध्य सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
  • दूसरी तरफ सरकारी क्षेत्र में रोज़गार के अवसर बढ़ने की बजाय हाल के वर्षों में कम हुए हैं।
  • इसी प्रकार सार्वजनिक क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों में वृद्धि नहीं हुई बल्कि समय-समय पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना और स्वीकृत पदों पर रिक्तियों के चलते सरकारी कर्मचारियों की संख्या में उत्तरोत्तर कमी होती गई। 
  • संगठित निजी क्षेत्रों में भी रोज़गार के अवसरों में वांछित वृद्धि नहीं हुई है। हाल के वर्षों में आर्थिक विकास की दर की गति काफी तेज़ रही है, जबकि रोज़गार के अवसरों का सृजन नहीं हुआ।
  • वर्ष 2002 के पश्चात् वैश्विक मंदी के चलते अर्थव्यवस्था के विविध क्षेत्रों में छंटनी तथा प्रौद्योगिकी के तेज़ विकास एवं अधिकाधिक प्रयोग से नौकरियों की कटौती हुई है। 
भारतीय संविधान में ‘श्रम’ समवर्ती सूची का विषय है, अतः इस पर केंद्र व राज्य सरकारें दोनों ही कानून बना सकती हैं। पिछले सात दशकों में केंद्र व राज्य सरकारों ने श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा और कल्याण के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं-
  • कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम (ESI act) के तहत निर्धारित मज़दूरी की सीमा 15000 रुपए से बढ़ाकर 21000 रुपए प्रतिमाह कर दी गई है। 
  • ESI के तहत सरकार ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल पर आधारित विभिन्न स्तरों के अस्पतालों में इलाज़ की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में कदम उठाए हैं। 
  • मातृत्व लाभ के अंतर्गत वैतनिक अवकाश 12 सप्ताह कर दिया गया है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) ने सार्वभौम खाता संख्या (UAN) प्रारंभ की है। 
  • श्रमेव जयते कार्यक्रम में एकीकृत पोर्टल ‘श्रम सुविधा पोर्टल’ प्रारंभ किया गया है। 
  • श्रम कानूनों के तहत अलग-अलग रिटर्न भरने के स्थान पर सरल एकल ऑनलाइन रिटर्न एवं पंजीकरण के लिये विशिष्ट श्रमिक पहचान नंबर प्रदान किये गए हैं। 
  • कारखानों में नियोजित कामगारों को पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करने तथा उनके कल्याण के लिये कारखाना अधिनियम, 1948 में संशोधन प्रस्तावित है।
देश के विकास में श्रमिकों की भूमिका संसाधनों और शासन व्यवस्था से कमतर नहीं आंकी जा सकती है। अतः श्रमिक कल्याण और उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित कर देश के विकास को तीव्र, समावेशी और संधारणीय बनाया जा सकता है।

Saturday, August 18, 2018

प्रश्न:- क्या तीन तलाक की प्रथा को मुस्लिम महिलाओं के लिए उचित माना जा सकता है इस संबंध में केंद्र सरकार के रुख को स्पष्ट कीजिएl क्या तीन तलाक को भारतीय संविधान के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार संबंधित खंड के तहत उचित माना जा सकता है?

              तीन तलाक मूल रूप से मुस्लिम निजी कानून के तहत संबंध विच्छेद करने की एक प्रक्रिया है, जिसे 'तलाक-उल-विदत' कहा जाता है, इसके तहत कोई भी मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को जब चाहे तीन बार तलाक बोलकर संबंध विच्छेद कर सकता है, इस प्रकार इस प्रथा को अधिकiश मुस्लिम उलेमा और अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य इस्लाम और शरिया कानून का हिस्सा मानते हैं और इसके अनुसार उसे समाप्त नहीं किया जा सकता, परंतु शिया वर्ग के लोग इसे नहीं मानते हैं l

            यह प्रथा महिलाओं के शोषण का बड़ा हथियार है तथा यह प्रथा पुरुष को एक तरफा संबंध विच्छेद करने का अधिकार देता है, जो समाज में पुरुषों का प्रभुत्व एवं महिलाओं की दोयम स्थिति का परिचायक है अतः इस प्रथा को किसी भी दृष्टिकोण से महिला के हित में उचित नहीं माना जा सकता हैl

              तीन तलाक के मुद्दे पर एक तरफ जहां मुस्लिम धर्मगुरु इस प्रथा को अपने पर्सनल लॉ का हिस्सा मानते हैं वही सरकार इस प्रथा को मौलिक अधिकार के विरुद्ध मानती हैl

तीन तलाक के मुद्दे पर केंद्र सरकार के रुख:-
       तीन तलाक के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है तथा इसे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के विरुद्ध माना है, सरकार के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 में जो समानता का अधिकार दिया गया है, तीन तलाक उस संवैधानिक अधिकार को छीन लेता है,  इस मामले में केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के बीच कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न रखे हैं जो निम्नलिखित हैं:-
  • क्या तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 25(1) के तहत संरक्षण प्राप्त है?
  • क्या धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, मौलिक अधिकारों विशेषकर समानता तथा गरिमा के जीवन जीने के अधिकार के समान है?
  • क्या पर्सनल लॉ को अनुच्छेद 13 के तहत कानून माना जाएगा ?
  • क्या 'तलाक-उल-विदत', निकाह हलाला एवं बहुविवाह राष्ट्रीय संघियों एवं समझौते के तहत सही है?

  तीन तलाक को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(1) के तहत उचित नहीं माना जा सकता है क्योंकि इस अनुच्छेद के तहत धार्मिक स्वतंत्रता को जो अधिकार प्रदान किया गया है उसे लोक-व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा अन्य उपबंधों के अधीन सीमित किया जा सकता है l

    निष्क्रियत: यह कहा जा सकता है कि तीन तलाक की प्रथा ना तो मुस्लिम महिलाओं के हितों के अनुकूल है और ना ही संविधान सम्मत l

Wednesday, August 15, 2018

प्रश्न. ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप की रूपरेखा को प्रस्तुत कीजिये एवं इन बस्तियों की समस्याओं का उल्लेख करें।

       ग्रामीण बस्ती का तात्पर्य एक ऐसे प्रदेश से है जहाँ सामान्यतः प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न अपेक्षाकृत छोटे जनसंख्या समूह एक साथ निवास करते हैं। ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप इन क्षेत्रों में मकानों की स्थिति तथा उनके अंतर्संबंध को दर्शाता है। यह गाँव की आकृति तथा वहाँ की पर्यावरणीय एवं भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है। ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-
  • रैखिक प्रतिरूप- इसमें मानव बस्तियों का निर्माण सड़कों, रेल लाइनों तथा  नदियों आदि के किनारे होता है।
  • आयताकार प्रतिरूप- इनका निर्माण समतल क्षेत्रों में होता है यहाँ सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
  • वृत्ताकार प्रतिरूप- इसमें किसी तालाब अथवा झील के चारों ओर बस्तियों का निर्माण होता है।
  • तारे के आकार का प्रतिरूप- इनका निर्माण उन प्रदेशों में होता है जहाँ बहुत सारी सड़कें एक साथ एक स्थान पर मिलती हैं। इस प्रकार इन सड़कों के किनारे मकानों के निर्माण होने से ये तारे की आकृति के प्रतीत होते हैं।
  • टी अथवा वाई आकार के प्रतिरूप-  टी आकार की बस्तियाँ सड़कों के तिराहे पर विकसित होती हैं, जबकि वाई आकार की बस्तियों का निर्माण उन क्षेत्रों में होता है जहाँ दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं।
  • दोहरे ग्राम- नदी अथवा पुल के दोनों किनारों पर बस्तियों के निर्माण से दोहरे ग्राम प्रतिरूप का निर्माण होता है।
ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ
       अपेक्षाकृत कम जनसंख्या के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित नहीं हो पाती। साथ ही यहाँ रोज़गार के साधनों का अभाव होता है जिससे अधिकांश जनसंख्या कृषि से संबंधित कुछ सीमित कार्यों में ही लगी रहती है। इससे यहाँ छिपी बेरोज़गारी, गरीबी तथा प्रवास की समस्या उभरती है। इसका प्रत्यक्ष परिणाम खाद्य सुरक्षा तथा कुपोषण की समस्या के रूप में दिखाई देता है। 
       कुपोषण के कारण लोगों की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और वे बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। साथ ही शौचालय एवं कूड़ा-कचरा निस्तारण की सुविधाओं के अभाव के कारण इन  क्षेत्रों में हैजा, पीलिया जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं। स्वास्थ्य के कमज़ोर होने से लोग आर्थिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाते जिससे गरीबी के कुचक्र का निर्माण होता है।
       सड़क, चिकित्सा तथा शिक्षा से संबंधित अवसंरचना का अभाव इन समस्याओं को और भी बढ़ा देता है। शिक्षा के अभाव के कारण यहाँ अंधविश्वास तथा सामाजिक रूढ़ियों की समस्याओं को देखा जा सकता है। 
         पितृसत्तात्मक व्यवस्था, डायन प्रथा, विधवा महिला से विभेद तथा जाति के नाम पर छुआछूत जैसी सामाजिक समस्याएँ ग्रामीण बस्तियों में देखी जा सकती हैं। अंधविश्वास जैसी समस्याओं से स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अपने रोगों के इलाज के लिये डॉक्टर के स्थान पर ये ओझाओं पर अधिक विश्वास करते हैं जिससे समय पर इलाज न हो पाने के कारण कई बार लोगों की मृत्यु भी हो जाती है। 
         उदाहरण के लिये, 2017 में उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले में 9 लोगों की मृत्यु साँप के काटने से हुई, जबकि इस स्थान से ज़िला अस्पताल या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 1 घंटे से अधिक की दूरी पर नहीं है। ध्यातव्य है कि भारत में पाया जाने वाला कोई भी साँप इतना विषैला नहीं होता कि 1 घंटे से कम समय में व्यक्ति की मृत्यु हो जाए।
        अतः स्पष्ट है कि गरीबी, बेरोज़गारी तथा आर्थिक एवं सामाजिक संरचना का अभाव ग्रामीण बस्तियों की सबसे बड़ी समस्याओं में शामिल है। इसमें सुधार के लिये जनभागीदारी से युक्त एक समन्वित नीति की आवश्यकता है।