उत्तर :
1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र या लोकतंत्र और क्रांति से अलगाव को जर्मनी व इटली की एकीकरण की प्रक्रियाओं से समझा जा सकता है।
जब प्रशा के राजा फ्रेडरिक विल्हेम-IV ने संविधानवाद और गणतंत्र के पक्ष में ताज पहनने से इनकार दिया तो रूढ़िवादी ताकतों के मनोबल में वृद्धि हुई और वे उदारवादी आंदोलनों को दबाने में सफल रहे। हालाँकि वे पुरानी व्यवस्था कायम करने में असफल रहे। राजाओं को अब यह समझ में आने लगा कि उदारवादी-राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को रियायत प्रदान कर ही क्रांति और दमन के चक्र को समाप्त किया जा सकता है। इस उदारवादी-राजशाही पहल को प्रशा के बड़े भ-स्वामियों का भी समर्थन प्राप्त था। अब प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया आरंभ की जो अंततः काइज़र विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य के रूप में स्थापित हुई।
इटली के संदर्भ में भी यही स्थिति देखने को मिलती है। 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोहों की असफलता से युद्ध के ज़रिये इटली के राज्यों को एकीकृत करने की ज़िम्मेदारी विक्टर इमेनुअल-II पर आ गई जो अभिजात वर्ग की संभावनाओं के पोषक थे। इसके अतिरिक्त मंत्री प्रमुख कावूर जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया था, न तो एक क्रांतिकारी और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। इस तरह वह भी अभिजात वर्ग का ही संरक्षक था।
इस तरह राज्य की सत्ता को बढ़ाने और पूरे यूरोप पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से रूढ़िवादियों ने अकसर ही राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया, जिसका परिणाम यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और क्रांति से अलगाव के रूप में परिलक्षित हुआ।