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Sunday, December 29, 2019

प्रश्न:- 1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और क्रांति से अलगाव होने लगा। जर्मनी और इटली में हुई घटनाओं के उदाहरणों के माध्यम से इस विकास को बताएँ।

उत्तर :

1848 के बाद यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र या लोकतंत्र और क्रांति से अलगाव को जर्मनी व इटली की एकीकरण की प्रक्रियाओं से समझा जा सकता है।
जब प्रशा के राजा फ्रेडरिक विल्हेम-IV ने संविधानवाद और गणतंत्र के पक्ष में ताज पहनने से इनकार दिया तो रूढ़िवादी ताकतों के मनोबल में वृद्धि हुई और वे उदारवादी आंदोलनों को दबाने में सफल रहे। हालाँकि वे पुरानी व्यवस्था कायम करने में असफल रहे। राजाओं को अब यह समझ में आने लगा कि उदारवादी-राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों को रियायत प्रदान कर ही क्रांति और दमन के चक्र को समाप्त किया जा सकता है। इस उदारवादी-राजशाही पहल को प्रशा के बड़े भ-स्वामियों का भी समर्थन प्राप्त था। अब प्रशा ने राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया आरंभ की जो अंततः काइज़र विलियम प्रथम के नेतृत्व में नए जर्मन साम्राज्य के रूप में स्थापित हुई।
इटली के संदर्भ में भी यही स्थिति देखने को मिलती है। 1831 और 1848 में क्रांतिकारी विद्रोहों की असफलता से युद्ध के ज़रिये इटली के राज्यों को एकीकृत करने की ज़िम्मेदारी विक्टर इमेनुअल-II पर आ गई जो अभिजात वर्ग की संभावनाओं के पोषक थे। इसके अतिरिक्त मंत्री प्रमुख कावूर जिसने इटली के प्रदेशों को एकीकृत करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया था, न तो एक क्रांतिकारी और न ही जनतंत्र में विश्वास रखने वाला। इस तरह वह भी अभिजात वर्ग का ही संरक्षक था।
इस तरह राज्य की सत्ता को बढ़ाने और पूरे यूरोप पर राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से रूढ़िवादियों ने अकसर ही राष्ट्रवादी भावनाओं का इस्तेमाल किया, जिसका परिणाम यूरोप में राष्ट्रवाद का जनतंत्र और क्रांति से अलगाव के रूप में परिलक्षित हुआ।

Friday, March 2, 2018

प्रश्न;- प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के नियमन एवं सहयोग का एक महान मंच ‘राष्ट्र संघ’ अल्पकाल में ही असफल हो गया। चर्चा कीजिये।

     राष्ट्र संघ की स्थापना को पेरिस शांति सम्मेलन की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है। अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने राष्ट्र संघ की स्थापना में बड़ा योगदान दिया। पेरिस सम्मेलन में जब राष्ट्र संघ की रूपरेखा तैयार हुई, तब विल्सन की माँग पर ही राष्ट्र संघ को वर्साय-संधि का अभिन्न अंग बनाया गया। वर्साय संधि की प्रथम छब्बीस धाराएँ राष्ट्र संघ की रूपरेखा  से ही संबंधित हैं। परंतु, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सौहार्द्र का यह मंच अल्पकाल में ही असफल हो गया। इसकी असफलता के पीछे निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे-
  • राष्ट्र संघ के प्रमुख सदस्यों ने इसके सिद्धांतों पर विश्वास नहीं किया जबकि किसी भी संगठन की सफलता इसके सदस्यों के रवैये पर निर्भर करती है। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के अथक प्रयासों से राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी। लेकिन, बाद में अमेरिका स्वयं इसका सदस्य नहीं रहा। उसकी अनुपस्थिति में राष्ट्र संघ एक दुर्बल संस्था बन गई और उसके लिये आक्रामक तानाशाहों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना या कठोर कार्रवाई करना असंभव हो गया।
  • यू.एस.एस.आर. शुरू से ही राष्ट्र संघ को पूंजीवादी राष्ट्रों का संगठन-मात्र मानकर शंका की निगाह से देखता था। सोवियत संघ को शुरू में राष्ट्र संघ की सदस्यता नहीं दी गई थी किंतु जब हिटलर के उत्कर्ष से यूरोपीय शांति को खतरा उत्पन्न हो गया तो सोवियत संघ राष्ट्र संघ में शामिल हुआ। 
  • 1925 ई. में लोकार्नो समझौते के अनुसार जर्मनी को राष्ट्र संघ की सदस्यता दी गई परंतु, जर्मनी से सहयोग की अपेक्षा व्यर्थ थी क्योंकि राष्ट्र संघ उस ‘घृणित’ वर्साय संधि का एक अभिन्न अंग था जिसको हिटलर मिटाने का उद्देश्य रखता था।
  • इटली खुद को मुसोलिनी की फासिस्टवादी विचारधारा के समक्ष समर्पित कर चुका था। उस विचारधारा को ‘विश्व शांति के सिद्धांत’ में बिल्कुल भी विश्वास न था।
  • शेष बची बड़ी शक्तियाँ ब्रिटेन और फाँस थे, जो राष्ट्र संघ के भविष्य को निर्धारित कर सकते थे, किंतु ये दोनों देश केवल अपने साम्राज्यवादी-पूंजीवादी हितों के प्रति प्रतिबद्ध थे और आक्रामकों के विरूद्ध ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करना चाहते थे जिससे उनके हितों को धक्का लगे।

      इन हालातों में राष्ट्र संघ का असफल होना स्वाभाविक था। परंतु, अपनी असफलता के बावजूद राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को सहयोग और सौहार्द्र का नया मार्ग दिखाया। इसने विश्व को एक बहुमूल्य अनुभव दिया। कालांतर में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना इसी अनुभव और परीक्षण का ही परिणाम था।